ओशो – गीता-दर्शन – भाग 3

गीता दर्शन—(भाग-3)

कृष्‍ण कोई व्‍यक्‍ति की बात नहीं है;
कृष्‍ण तो चैतन्‍य की एक घड़ी है,
चैतन्‍य की एक दशा है, परम भाव है।
जब भी कोई व्‍यक्‍ति परम को उपलब्‍ध हुआ।
और उसने फिर गीता पर कुछ कहा,
तब—तब गीता से पुरानी राख झड़ गई,
फिर गीता नया अंगारा हो गई।
ऐसे हमने गीता को जीविंत रखा है।
समय बदलता गया,
शब्‍दों के अर्थ बदलते गये,
लेकिन गीता को हम नया जीवन देते चले गए।
गीता आज भी जिंदा है।

ओशो – गीता-दर्शन – भाग 3

अध्याय—6

प्रवचन 1. कृष्ण का संन्यास, उत्सवपूर्ण संन्यास
प्रवचन 2. आसक्ति का सम्मोहन
प्रवचन 3. मालकियत की घोषणा
प्रवचन 4. ज्ञान विजय है
प्रवचन 5. हृदय की अंतर-गुफा
प्रवचन 6. अंतर्यात्रा का विज्ञानप्रवचन 7. अपरिग्रही चित्त
प्रवचन 8. योगाभ्यास–गलत को काटने के लिए
प्रवचन 9. योग का अंतर्विज्ञान
प्रवचन 10. चित्त वृत्ति निरोध
प्रवचन 11. दुखों में अचलायमान
प्रवचन 12. मन साधन बन जाए
प्रवचन 13. पदार्थ से प्रतिक्रमण–परमात्मा पर
प्रवचन 14. अहंकार खोने के दो ढंग
प्रवचन 15. सर्व भूतों में प्रभु का स्मरण
प्रवचन 16. मन का रूपांतरण
प्रवचन 17. वैराग्य और अभ्यास
प्रवचन 18. तंत्र और योग
प्रवचन 19. यह किनारा छोड़ें
प्रवचन 20. आंतरिक संपदा
प्रवचन 21. श्रद्धावान योगी श्रेष्ठ है

अध्याय—7

प्रवचन 1. अनन्य निष्ठा
प्रवचन 2. परमात्मा की खोज
प्रवचन 3. अदृश्य की खोज
प्रवचन 4. आध्यात्मिक बल
प्रवचन 5. प्रकृति और परमात्मा
प्रवचन 6. जीवन अवसर है
प्रवचन 7. मुखौटों से मुक्ति
प्रवचन 8. श्रद्धा का सेतु
प्रवचन 9. कामना और प्रार्थना
प्रवचन 10. धर्म का सार: शरणागति

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